स्त्रियों के प्रति बढ़ते अपराध
“ देवेश चतुर्वेदी “
भारत में प्राचीन काल से ही स्त्रियों को देवी का दर्जा प्राप्त है और उसी लिये स्त्रियों के नाम के साथ “ देवी “ उपनाम जोड़ा जाता रहा है । स्त्री लक्ष्मी भी है और सरस्वती भी है । स्त्री काली भी है और दुर्गा भी है अर्थात् चारों देवियों के गुणों का समावेश स्त्रियों में माना जाता रहा है ।
किसी भी सभ्यता की उपलब्धियों एवं श्रेष्ठता का मूल्यांकन करने का सर्वोत्तम आधार वहाँ स्त्रियों की सामाजिक स्थिति का अध्ययन करने में ही होता है । समाज में सुख एवं शांति का वातावरण रखने के लिए स्त्रियों के प्रति हमारे मन में सम्मान की भावना होनी ही चाहिए ।
परन्तु हाल ही में मणिपुर में दो स्त्रियों को निर्वस्त्र कर के प्रताड़ित करने की घटना हो या राजस्थान बंगाल या अन्य राज्यों में स्त्रियों के साथ हो रहे अत्याचार दुर्व्यवहार एवं दुष्कर्म की घटनाओं ने जन मानस को विचलित कर दिया है ।
चिंता की बात है कि लोगों में शिक्षा स्तर की वृद्धि के बावजूद भी इतनी घिनौनी हरकत कैसे हो सकती है । स्त्रियों के खिलाफ दुनिया भर में अत्याचार एक व्यापक समस्या बनती जा रही है । प्रत्येक दिन एसिड़ फेंकना दुष्कर्म या दुष्कर्म के उपरान्त हत्या करना अथवा जला देना आदि सुनकर दिल दहल उठता है । यह क्रूरता की पराकाष्ठा है ।
स्त्रियों पर हो रहे अत्याचार के लिये समाज ही जिम्मेदार है । जब जन प्रतिनिधियों की सदन में स्त्रियों पर हो रहे अत्याचार और अनाचार के विषय में चर्चा देखते हैं तो मात्र राजनीति होती है और एक दूसरे पर आरोप एवं प्रत्यारोप ही करते हुए पाते हैं ।
इन अत्याचारों को समाप्त करने के लिए राजनीतिज्ञ कानून एवं समाज को अब गंभीरता से अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए ताकि स्त्रियों का मानसिक एवं शारीरिक शोषण रोका जा सके ।
इस के लिए कानूनों एवं न्याय व्यवस्था में व्यापक सुधार लाने की आवश्यकता है । पुलिस व्यवस्था में भी आमूल चूल सुधार एवं उच्च स्तरीय प्रशिक्षण की आवश्यकता है ।
स्वयंसेवी संगठनों को सरकार की तरफ से प्रोत्साहन दिया जाना चहिए ताकि स्त्रियों के विरुद्ध होने वाले अपराधों एवं अत्याचारों को रोकने के लिए एक सशक्त जनमत का निर्माण किया जा सके ।
स्त्रियों के लिए बेहतर अवसर पैदा करने के लिए समाज में जागरूकता पैदा करना अत्यन्त आवश्यक है । साथ में नई पीढ़ी को नैतिक एवं मानवीय मूल्यों की शिक्षा गंभीरता से दी जानी चाहिए । भोग वादी प्रवृत्ति के बुरे प्रभाव को कम करने के लिए प्राचीन भारतीय आदर्शों को फिर से स्थापित किया जाना चाहिए ।
जहाँ देवियों की पूजा करते हैं । हमारे देश भारत को जिसे भारत माता के रूप में देखते हैं और जिस देश में गंगा यमुना सरस्वती गोदावरी आदि नदियों की पूजा माँ के रूप में करते हों वहाँ स्त्रियों के ऊपर इस प्रकार के अत्याचार दुर्भाग्य पूर्ण हैं ।
इन घटनाओं पर शीघ्र गंभीरता से चिन्तन करने की आवश्यकता है और हर व्यक्ति को अपने अन्दर झांकने की जरूरत है ।
इतिहास इस बात का साक्षी है कि जिस समाज में नारी जाति पर अत्याचार हुए उस समाज का हमेशा पतन ही हुआ है ।
संस्कृत में कहा गया है –
यत्र नार्यस्तू पूज्यंते
रमन्ते तत्र देवता:
अर्थात जहाँ पर नारी की पूजा होती है
वही देवता वास करते हैं ।
युवक मासिक पत्रिका |
9 comments:
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