# बंगाल एवं हिंसा

# पश्चिम बंगाल में क्या राष्ट्रपति शासन लागू करने से  होगा हिंसा का समाधान?

                                        " देवेश चतुर्वेदी "


दिल्ली में पटियाला हाउस कोर्ट के बहार एकत्रित हुए भारी संख्या में वकीलों ने ‘ लाँयर्स फोर जस्टिस ‘ के बैनर तले पश्चिम बंगाल में हो रही हिंसा की घटनाओं के विरोध में पिछले दिनों कैंडल मार्च निकाला और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सरकार पर गंभीर आरोप लगाए ।
पश्चिम बंगाल में इंसाफ के लिए प्रदर्शन करते हुए राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग भी की। 
वकीलों का कहना है कि पश्चिम बंगाल के न्याय की लड़ाई अब राष्ट्रीय स्तर पर लड़ी जाएगी ।
पर क्या राष्ट्रपति शासन लागू करने से इस समस्या का समाधान होगा ?

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पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा का अपना एक इतिहास रहा है । भारत की आजादी के बाद बंगाल राज्य में कांग्रेस पार्टी की सत्ता रही है।  
70 के शुरुआती दशक  बंगाल राज्य में वामपंथ का प्रभाव दिखाने लगा। उस दौर में दार्जिलिंग जिले के नक्सलबडी गाँव में आदिवासी किसानों ने हथियार उठा लिए और फिर कईं वर्षों तक बंगाल राज्य के गाँव-गाँव से लेकर शहर कोलकाता तक ख़ूनी खेल चलता रहा। इस नक्सल विद्रोह के बाद से नक्सल और नक्सलाइट शब्दों का प्रयोग सरकार के खिलाफ बन्दूक उठाने वालों के लिए होने लगा।
जब  1972 में सिध्दार्थ शंकर रे के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने सरकार बनाई तब बंगाल राज्य में हिंसा ओर बढ़ गई और फिर  1977 में  वाम मोर्चा की ऐतिहासिक जीत हुई और 34 सालों तक सत्ता पर राज्य किया। 
 वामपंथी पार्टियों ने राजनैतिक हिंसा से जन्में असंतोष से सत्ता हासिल की और 34 साल बाद खुद को भी उसी परिस्थिति में घिरा हुआ पाया।
बुध्देव भट्टाचार्य के नेतृत्व वाली वाम मोर्चा  सरकार ने जब सिंगुर और नंदीग्राम में उधोगों के लिए जमीनों के अधिग्रहण की कोशिश में लेकर जो हिंसा भड़की उसे ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल सरकार ने वाम सरकार के खिलाफ जन्में असंतोष को राजनीतिक आंदोलन का रूप दे दिया और 2011 में 34 साल से राज्य कर रही वाम मोर्चा की सत्ता को उखाड़ फेंका।
लेकिन इसके बाद भी हिंसा का दौर आज तक थमा नहीं है। राज्य के हर चुनाव के दौरान  बंगाल के राज्य के हर गाँव-गाँव से लेकर शहर कोलकाता तक हिंसा का तंडाव देखा जा सकता है।
लोगों का मानना है कि थोड़ी बहुत हिंसा सभी राज्यों में भी घटित होती हैं पर बंगाल इसमें विशेष रूप से आगे बढ़ता जा रहा है ओर  इसकी चर्चा अब सिर्फ बंगाल में ही नहीं बल्कि  बंगाल राज्य के बहार भी हो रही हैं।  
सबसे हैरानी की बात तो यह है कि यह सिर्फ भाजपा  के साथ तृणमूल की लडाई नहीं है, बल्कि उसके साथ-साथ तृणमूल के अन्दर ही अन्दर  तृणमूल के कार्यकर्ताओं में  आपसी लडाई भी है।  यह इलाके पर अपनी दावेदारी बनाये रखने के लिए आपसी लडाई  है। 
सत्ता में रहना लूट से जुड़ चुका है और  जब अपराधी किसी भी  राजनीतिक दल में शामिल होगे तो क्या उम्मीद की जा सकती है।  राजनीतिक  विशेषज्ञों का मानना है कि हिंसा की बढ़ती सबसे प्रमुख वजह राजनीति में अपराधियों का दख़ल है। अपराधी जब नेता बनते हैं तो राजनीति कमाई का सिर्फ एक जरिया बन जाता है और पुलिस के हाथ भी काफी हद तक बंध जाते हैं। उनका काम नेताओं को सलाम ठोंकना बन के रह जाता है। इस फलस्वरूप हर चुनाव में  जबरदस्त हिंसा होती है और सिर्फ एक ही शब्द सब के कानों में गूंजता है ‘ संत्रास ‘ जिसका अर्थ होता है- आतंक, दहशत, ओर यह ही बंगाल की तस्वीर हर चुनाव में सामने उभर कर आ जाती है। 
बंगाल में शायद ही कोई भी ऐसा दिन जाता है जिस दिन राजनीतिक हिंसा की कोई खबर नहीं आती है। कभी किसी पार्टी दफ्तर पर हमला हो या कभी किसी जगह समर्थकों में आपसी भिड़त ही हो या फिर एक दूसरे दल के कार्यकर्ता की हत्या की खबर हो। 
पुलिस प्रशासन पर सत्ताधारी पार्टी का हस्तक्षेप बढ़ना भी एक गंभीर चिंता का विषय होता जा रहा है। सरकार पर पूर्व में भी आरोप लगाते रहे हैं कि कई अफसरों के तबादले सिर्फ इसलिए करवा दिये गये है क्योंकि वे घटनाओं को लेकर विधि सम्मत कार्यवाही कर रहे थे। विपक्षी दलों का मानना है कि सत्ताधारी सरकार पुलिस के साथ तथा कानूनी मामलों में राजनीतिक हस्तक्षेप कर रही है जिस कारण पुलिस अफसर निष्पक्ष होकर कोई कार्यवाही नहीं कर पा रहे हैं ओर पुलिस पर भी पक्षपात पूर्ण कार्यवाही अपना ने का आरोप लग रहा है। 
बंगाल में राजनीतिक झड़पों में बढोतरी के पिछे प्रमुख तीन कारण है –
i. बेरोजगारी 
ii. विधि शासन पर सत्ता धारी दल का वर्चस्व 
iii. और भाजपा का बंगाल में सख्त कदम जमाना 
आज बेरोजगार युवक कमाई के लिए राजनीतिक पार्टी से जुड़ रहे हैं ताकि नगरपालिका ओर पंचायत स्तर पर होने वाले विकास के कार्यों का ठेका उन्हें मिल सके। 
बंगाल में वसूली (तोलाबाजी)  भी कमाई का एक बड़ा जरिया बनता जा रहा है और इसी वजह से उनका ही उम्मीदवार किसी भी कीमत पर जीतना चाहिए उसके लिए चाहे हिंसा का मार्ग  ही क्यों न हो, क्योंकि यह उनके लिए आर्थिक लड़ाई है।
बंगाल का तनाबना लगभग हर एक सरकार ने बिगाड़ा है।
समाज सुधारक ओर स्वतंत्रता सेनानी गोपाल कृष्ण गोखले द्वारा प्रसिद्ध कहावत– ‘ बंगाल आज क्या सोचता है,  भारत कल सोचता है ‘। 
गुरु रवीन्द्र नाथ टैगोर,  नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ओर स्वामी विवेकानंद जैसे सभी महापुरुषों ने न केवल बंगाल को बल्कि पूरे भारत को उज्वल भविष्य दिखाया है। हमें बंगाल से इस राजनीतिक हिंसा को जड़ से उखाड़ फेंकने का वक़्त आ गया है और बंगाल को उसका खोये गौरव को लोटने के प्रति बंगाल की सरकार एवम विपक्षियों को सकारात्मक राजनीति अपनानी चाहिए ओर तभी मुमकिन है पश्चिम बंगाल में हिंसा का समाधान ।

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