निवेदन देवेश चतुर्वेदी/Submission Devesh Chaturvedi

Showing posts with label राजनीति. Show all posts
Showing posts with label राजनीति. Show all posts

# ममता बनर्जी

# क्या ममता बनर्जी 2024 में बन सकती हैं प्रधानमंत्री ?




                                 " देवेश चतुर्वेदी "




articlesdev.com Mamta Bannerjee
ममता बनर्जी 

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के तीसरे कार्यकाल की पहली वर्षगांठ पर तृणमूल के प्रवक्ता कुणाल घोष की भविष्यवाणी से एक बार फिर से अभिषेक बनर्जी के मुख्यमंत्री बनने की बहस शुरू हो गयी है।
कुणाल घोष का मानना है कि ममता बनर्जी के भतीजे एवं पार्टी के महासचिव अभिषेक बनर्जी 2036 में पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री होगे। इसके बाद ही पश्चिम बंगाल की संसद अपरूपा पोद्दार घोष ने एक ट्रवीट किया कि ममता बनर्जी 2024 में देश की प्रधानमंत्री बनेगी एवं अभिषेक बनर्जी 2024 में पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री हालांकि यह ट्रवीट करने के लगभग एक घंटे में ही उन्होंने इसे डिलीट भी कर दिया था।
इस समय प्रधानमंत्री बनने की रेस में सभी विपक्षी दलों में यदि कोई सबसे आगे है तो वह हैं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी।
कमजोर होती कांग्रेस को ममता बनर्जी अपने मिशन ‘प्रधानमंत्री’ के लिए बहुत अच्छा मौके के तौर पर देख रही हैं। राहुल-प्रियंका की लाख कोशिशों के बावजूद भी कांग्रेस थकी एवं बिखरी हुई दिख रही है।
पश्चिम बंगाल की जनता ने ममता बनर्जी के संघर्ष को देखा है एवं दीदी की छवि स्ट्रीट फाइटर की रही है। जब बिग्रेड में किसी सभा का आयोजन करती हैं तो लोग उनके भाषण सुनने के लिए अवश्य पहुँचते हैं और दीदी के प्रति उनका उत्साह देखते ही बनता है। राज्य के अन्दर ममता बनर्जी जितनी प्रभावशाली है उतनी राज्य के बहार न होने के कारण उन्हें अन्य राज्य के क्षेत्रीय पार्टीयों के सहारे की अत्यन्त आवश्यकता है। इसी कारण ममता बनर्जी दिल्ली का लगातार दौरा कर रही हैं एवं राज्य की राजनीति से निकल कर राष्ट्रीय राजनीति की ओर बढ़ रही हैं। एक बार फिर से उन्होंने सभी विपक्षी दलों का आह्वान किया है।
ममता बनर्जी के देश का अगला प्रधानमंत्री बनने को लेकर भी राजनीतिक विशेषज्ञों में मतभेद है। कुछ राजनीतिक विशेषज्ञ उन्हें भविष्य के प्रधानमंत्री के रूप में देखते हैं और कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह ममता बनर्जी के लिए आसान नहीं होगा।
इस बात का खंडन नहीं किया जा सकता है कि राजनीति में कुछ भी संभव है ।


# बंगाल एवं हिंसा

# पश्चिम बंगाल में क्या राष्ट्रपति शासन लागू करने से  होगा हिंसा का समाधान?

                                        " देवेश चतुर्वेदी "


दिल्ली में पटियाला हाउस कोर्ट के बहार एकत्रित हुए भारी संख्या में वकीलों ने ‘ लाँयर्स फोर जस्टिस ‘ के बैनर तले पश्चिम बंगाल में हो रही हिंसा की घटनाओं के विरोध में पिछले दिनों कैंडल मार्च निकाला और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सरकार पर गंभीर आरोप लगाए ।
पश्चिम बंगाल में इंसाफ के लिए प्रदर्शन करते हुए राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग भी की। 
वकीलों का कहना है कि पश्चिम बंगाल के न्याय की लड़ाई अब राष्ट्रीय स्तर पर लड़ी जाएगी ।
पर क्या राष्ट्रपति शासन लागू करने से इस समस्या का समाधान होगा ?

articlesdev.com West Bengal

पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा का अपना एक इतिहास रहा है । भारत की आजादी के बाद बंगाल राज्य में कांग्रेस पार्टी की सत्ता रही है।  
70 के शुरुआती दशक  बंगाल राज्य में वामपंथ का प्रभाव दिखाने लगा। उस दौर में दार्जिलिंग जिले के नक्सलबडी गाँव में आदिवासी किसानों ने हथियार उठा लिए और फिर कईं वर्षों तक बंगाल राज्य के गाँव-गाँव से लेकर शहर कोलकाता तक ख़ूनी खेल चलता रहा। इस नक्सल विद्रोह के बाद से नक्सल और नक्सलाइट शब्दों का प्रयोग सरकार के खिलाफ बन्दूक उठाने वालों के लिए होने लगा।
जब  1972 में सिध्दार्थ शंकर रे के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने सरकार बनाई तब बंगाल राज्य में हिंसा ओर बढ़ गई और फिर  1977 में  वाम मोर्चा की ऐतिहासिक जीत हुई और 34 सालों तक सत्ता पर राज्य किया। 
 वामपंथी पार्टियों ने राजनैतिक हिंसा से जन्में असंतोष से सत्ता हासिल की और 34 साल बाद खुद को भी उसी परिस्थिति में घिरा हुआ पाया।
बुध्देव भट्टाचार्य के नेतृत्व वाली वाम मोर्चा  सरकार ने जब सिंगुर और नंदीग्राम में उधोगों के लिए जमीनों के अधिग्रहण की कोशिश में लेकर जो हिंसा भड़की उसे ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल सरकार ने वाम सरकार के खिलाफ जन्में असंतोष को राजनीतिक आंदोलन का रूप दे दिया और 2011 में 34 साल से राज्य कर रही वाम मोर्चा की सत्ता को उखाड़ फेंका।
लेकिन इसके बाद भी हिंसा का दौर आज तक थमा नहीं है। राज्य के हर चुनाव के दौरान  बंगाल के राज्य के हर गाँव-गाँव से लेकर शहर कोलकाता तक हिंसा का तंडाव देखा जा सकता है।
लोगों का मानना है कि थोड़ी बहुत हिंसा सभी राज्यों में भी घटित होती हैं पर बंगाल इसमें विशेष रूप से आगे बढ़ता जा रहा है ओर  इसकी चर्चा अब सिर्फ बंगाल में ही नहीं बल्कि  बंगाल राज्य के बहार भी हो रही हैं।  
सबसे हैरानी की बात तो यह है कि यह सिर्फ भाजपा  के साथ तृणमूल की लडाई नहीं है, बल्कि उसके साथ-साथ तृणमूल के अन्दर ही अन्दर  तृणमूल के कार्यकर्ताओं में  आपसी लडाई भी है।  यह इलाके पर अपनी दावेदारी बनाये रखने के लिए आपसी लडाई  है। 
सत्ता में रहना लूट से जुड़ चुका है और  जब अपराधी किसी भी  राजनीतिक दल में शामिल होगे तो क्या उम्मीद की जा सकती है।  राजनीतिक  विशेषज्ञों का मानना है कि हिंसा की बढ़ती सबसे प्रमुख वजह राजनीति में अपराधियों का दख़ल है। अपराधी जब नेता बनते हैं तो राजनीति कमाई का सिर्फ एक जरिया बन जाता है और पुलिस के हाथ भी काफी हद तक बंध जाते हैं। उनका काम नेताओं को सलाम ठोंकना बन के रह जाता है। इस फलस्वरूप हर चुनाव में  जबरदस्त हिंसा होती है और सिर्फ एक ही शब्द सब के कानों में गूंजता है ‘ संत्रास ‘ जिसका अर्थ होता है- आतंक, दहशत, ओर यह ही बंगाल की तस्वीर हर चुनाव में सामने उभर कर आ जाती है। 
बंगाल में शायद ही कोई भी ऐसा दिन जाता है जिस दिन राजनीतिक हिंसा की कोई खबर नहीं आती है। कभी किसी पार्टी दफ्तर पर हमला हो या कभी किसी जगह समर्थकों में आपसी भिड़त ही हो या फिर एक दूसरे दल के कार्यकर्ता की हत्या की खबर हो। 
पुलिस प्रशासन पर सत्ताधारी पार्टी का हस्तक्षेप बढ़ना भी एक गंभीर चिंता का विषय होता जा रहा है। सरकार पर पूर्व में भी आरोप लगाते रहे हैं कि कई अफसरों के तबादले सिर्फ इसलिए करवा दिये गये है क्योंकि वे घटनाओं को लेकर विधि सम्मत कार्यवाही कर रहे थे। विपक्षी दलों का मानना है कि सत्ताधारी सरकार पुलिस के साथ तथा कानूनी मामलों में राजनीतिक हस्तक्षेप कर रही है जिस कारण पुलिस अफसर निष्पक्ष होकर कोई कार्यवाही नहीं कर पा रहे हैं ओर पुलिस पर भी पक्षपात पूर्ण कार्यवाही अपना ने का आरोप लग रहा है। 
बंगाल में राजनीतिक झड़पों में बढोतरी के पिछे प्रमुख तीन कारण है –
i. बेरोजगारी 
ii. विधि शासन पर सत्ता धारी दल का वर्चस्व 
iii. और भाजपा का बंगाल में सख्त कदम जमाना 
आज बेरोजगार युवक कमाई के लिए राजनीतिक पार्टी से जुड़ रहे हैं ताकि नगरपालिका ओर पंचायत स्तर पर होने वाले विकास के कार्यों का ठेका उन्हें मिल सके। 
बंगाल में वसूली (तोलाबाजी)  भी कमाई का एक बड़ा जरिया बनता जा रहा है और इसी वजह से उनका ही उम्मीदवार किसी भी कीमत पर जीतना चाहिए उसके लिए चाहे हिंसा का मार्ग  ही क्यों न हो, क्योंकि यह उनके लिए आर्थिक लड़ाई है।
बंगाल का तनाबना लगभग हर एक सरकार ने बिगाड़ा है।
समाज सुधारक ओर स्वतंत्रता सेनानी गोपाल कृष्ण गोखले द्वारा प्रसिद्ध कहावत– ‘ बंगाल आज क्या सोचता है,  भारत कल सोचता है ‘। 
गुरु रवीन्द्र नाथ टैगोर,  नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ओर स्वामी विवेकानंद जैसे सभी महापुरुषों ने न केवल बंगाल को बल्कि पूरे भारत को उज्वल भविष्य दिखाया है। हमें बंगाल से इस राजनीतिक हिंसा को जड़ से उखाड़ फेंकने का वक़्त आ गया है और बंगाल को उसका खोये गौरव को लोटने के प्रति बंगाल की सरकार एवम विपक्षियों को सकारात्मक राजनीति अपनानी चाहिए ओर तभी मुमकिन है पश्चिम बंगाल में हिंसा का समाधान ।

articlesdev.com




# बंगाल भारतीय जनता पार्टी

# पश्चिम बंगाल  में अन्तर्कलह

                        " देवेश चतुर्वेदी "

articlesdev.com West-Bengal


पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी दल तृणमूल कांग्रेस के भीतर इन दिनों वर्चस्व की लड़ाई तेज हो गई है । तृणमूल के पुराने व नए नेताओं के समर्थक आपस में बटे हुए नजर आते हैं। आए दिन तृणमूल के विभिन्न गुटों में आपसी संघर्ष देखने को मिल रहा है।
तृणमूल की आपसी गुटबाजी के पीछे रंगदारी एवं  टोल वसूली बताई जाती है।
कई जगहों पर हुई आपसी वर्चस्व की लड़ाई जिसमें अब बेहला इलाके में भीषण संघर्ष देखने को मिला । दोनों गुटों ने एक दुसरे पर जमकर ईंट, लाठी से आक्रमण किया । यहाँ तक कई राउंड गोलियां भी चली। गाडियों की तोड़-फोड़ हुई और घरों में घुस कर साधारण निवासियों को भी मारा एवं उनके घरों को  श्रतिग्रस्त कर दिया गया ।
इससे पहले बीरभूम जिले के रामपुरहाट में पिछले दिनों तृणमूल के दो गुटों में बटे एक गुट के  नेता  भादू शेख की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी । शेख की हत्या के बाद गुस्साए उनके समर्थकों की भीड़ ने बोताटुई गाँव में दुसरे पक्ष के अनेकों घरों में आग लगा दी जिसमें 9 लोगों की जलकर मौत हो गई। 
हाल ही में पार्षद अनुपम दत्ता और पार्षद तपन कंडू की गोली मारकर हत्या की गई। वाम छात्र नेता  अनीश खान को पुलिस की वर्दी पहने हुए बदमाशों ने घर में घुस कर मारा और फिर मकान की तीसरी मंजिल से नीचे फेंक कर हत्या कर दी ।
पश्चिम बंगाल में हिंसा और हत्याओं के साथ-साथ हांसखाली में नाबालिग लड़की से दुष्कर्म कर हत्या करने का मामला भी राजनीतिक तूल पकड़ रहा है । इस नाबालिग बच्ची के साथ बलात्कार मामले में तृणमूल के ही पंचायत नेता के बेटे को गिरफ्तार किया गया है ।
पश्चिम बंगाल में जारी इस हिंसा, बलात्कार एवं हत्या की घटनाओं को लेकर बीजेपी सीपीएम एवं कांग्रेस सीएम ममता बनर्जी पर सीधा निशाना साध रही हैं ।
पिछले 2 सप्ताह में कोलकाता हाई कोर्ट ने 7 मामलों में सीबीआई जांच के आदेश दे दिए हैं। यह मामले हैं i. एसएससी रिक्रूमेंट ii. एसएलएसटी रिक्रूमेंट iii.  भादू शेख ह्त्या केस iv. बीरभूम हिंसा v. झालदा कांग्रेस पार्षद हत्या केस vi. झालदा केस के चश्मदीद निरंजन वैष्णव की आप्रकृतीक मौत vii. हांसखाली नाबालिग रेप केस ।
पश्चिम बंगाल बीजेपी का कहना है कि पश्चिम बंगाल में लोगों की सुरक्षा तभी हो सकती है जब बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू हो।
तृणमूल सरकार का कहना है कि अन्य राजयो में भी एसी घटनाये होती है पर यहां हमारी सरकार को बदनाम करने के लिए प्रचार किया जा रहा है ।
मानवाधिकार कमीशन भी इस प्रकार की घटनाओं का संज्ञान ले रहा है ।
जो भी हो आम जनता की सुरक्षा सर्वोपरि होनी चाहिये । सरकार को इसके लिये सर्वोच्च प्राथमिकता देना आवश्यक है ।

articlesdev.com



# बंगाल भारतीय जनता पार्टी

# क्या मोदी-शाह का सपना 
    हो रहा है चकनाचूर ?

                      " देवेश चतुर्वेदी "




पश्चिम बंगाल में भाजपा प्रमुख विपक्षी दल है लेकिन बंगाल में राजनीतिक गतिविधियों से संकेत मिल रहा है कि भाजपा का सपना पश्चिम बंगाल में बिखर रहा है और अपने अस्तित्व को बचाने के लिए ही अब संघर्ष कर रही है। पिछले 1 साल में राज्य में हुए विधानसभा लोकसभा उपचुनावों एवं निकाय और नगरपालिका के चुनावों में भाजपा का प्रदर्शन पश्चिम बंगाल में बहुत ही निराशाजनक रहा है।

क्या भाजपा के मतदाता मायूस होकर सीपीएम की तरफ लौट रहे हैं ? 
अभी हुए उपचुनाव में सीपीएम का वोट शेयर बढा है जिसके कारण वाम मोर्चा काफी प्रसन्न है और कार्यकर्ताओं में एक नया जोश भर गया है। सीपीएम को उम्मीद की किरण दिखने लगी है और पूर्ण विश्वास है की भविष्य के चुनावों में और भी ज्यादा मजबूत होकर उभरेगी।
भाजपा  सिर्फ चुनावी मोर्चा पर ही नहीं विफल हो रही है बल्कि भाजपा के बड़े-छोटे नेताओं का तृणमूल कांग्रेस में पलायन भी एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है। प्रत्येक दिन किसी ना किसी भाजपा नेता के इस्तीफे की खबर आ जाती है।
मतुआ समुदाय के सांसद शांतनु ठाकुर पार्टी नेतृत्व के खिलाफ खुलकर नाराजगी जता चुके हैं। दार्जिलिंग की गोरखा जनमुक्ति मोर्चा भी भाजपा का साथ छोड़ चुकी है।
पश्चिम बंगाल मैं भाजपा के पास कोई चेहरा नहीं है जो ममता बनर्जी को टक्कर दे पाये।
ममता बनर्जी बहुत ही सशक्त नेता हैं और उनके साथ 30 प्रतिशत अल्पसंख्यक वोट बैंक भी है।
भाजपा के नेता अंदरूनी कलह के शिकार हैं जो विभिन्न गुटों में विभाजित हैं। ममता बनर्जी की तृणमूल सरकार के खिलाफ एकजुट होकर टक्कर देने की स्थिति में नहीं हैं । सभी अपनी डफली अपना राग अलाप रहे हैं। जब तक भाजपा का केंद्र नेतृत्व किसी एक बंगाली अस्मिता से ताल्लुक रखने वाले नेता को सामने लाकर जिम्मेदारी नहीं देगा तब तक बंगाल में भाजपा को अपना कुनबा संभाल कर रखना मुश्किल नजर आ रहा है। केंद्रीय नेतृत्व को बंगाल की स्थिति को लेकर तुरंत मंथन करने की आवश्यकता है वरना बंगाल में भाजपा मजबूत संगठन बनाने में असमर्थ रहेगी।
बंगाल में हार के लिए भाजपा नेता तृणमूल पर धांधली और अत्याचार का आरोप लगाते हैं। असल में भाजपा के कार्यकर्ताओं को नजर अंदाज किया जाता है एवं पीड़ित कार्यकर्ताओं को केवल मौखिक समर्थन ही मिलता है कोई ओर मदद नहीं मिलती जबकि  तृणमूल अपने कार्यकर्ताओं को हर तरह से मदद करती है आर्थिक सुख सुविधा के साथ पार्टी का पूर्ण समर्थन भी मिलता है। यह देखकर भाजपा कार्यकर्ता डर जाते हैं और खुद को अकेला महसूस करते हैं एवं  पार्टी से मोहभंग हो जाता है।
आज केंद्र में शासन के कारण और आरएसएस के समर्थन से भाजपा को इतने प्रतिशत वोट प्राप्त हुए हैं अन्यथा बंगाल में भाजपा का हाल कांग्रेश जैसा ही होता। भविष्य में राजनीति किस दिशा में करवट लेगी अभी बताना मुश्किल है।

articlesdev.com