# हमारे विकास की अंधी दौड़
से सृष्टि का विनाश क्यों ?
" देवेश चतुर्वेदी "
प्रकृति ने मनुष्य को समस्त बुनियादी आवश्यकताओं, सुख और सम्पदा के सारे संसाधन प्रदान किए हैं। प्रकृति ने शुद्ध वायु दी जिसमें हम सांस लेते हैं, शुद्ध पानी दिया जिसे हम पीते हैं एवम मिट्टी जिसमें हम अन्न पैदा करते हैं।
इनके अभाव में पृथ्वी पर जीवन असंभव है, तमाम विकास के बाबजूद हम इन बुनियादी आवश्यकताओं के निर्माण में अक्षम हैं।
जब जब हम प्रकृती से अनावश्यक खिलवाड़ करते हैं तब तब उसका गुस्सा भूकम्प, सुनामी, बाढ़, सुखा
एवं तुफान की शक्ल में हमारे सामने आया है।
क्या विकास की अंधी दौड़ से प्रकृती विनाश की ओर बढ़ रही है ?
भूस्खलन, बादल का फटना, ग्लेशियर का टूटना, भूकंप एवं चक्रवात जैसी 1960 दशक के बाद से चरम मौसम और जलवायु संबंधी घटनाओं की वजह इन आपदाओं की संख्या बढ़ रही है, जो प्रमुख प्राकृतिक आपदाएं आ रही है, इनमें अधिक से अधिक को मौसम और जलवायु से किसी न किसी तरह जोड़ कर देखा जा सकता है।
उतराखण्ड के चमोली जिले में 7 फरवरी को ग्लेशियर टूटने से आईं आपदा ने देश ही नहीं बल्कि विश्व को भी एक बार फिर से कड़ा संदेश दिया है।
एक्सपर्ट्स का यह भी मानना है कि इस शताब्दी के अन्त तक इस रफ्तार से तो हिमालय की एक तिहाई भाग ग्लेशियर खो देगा। वैज्ञानिकों के अनुसार अगर धरती का तापमान 2 डिग्री सेल्सियस से अगर बढता रहा तो पृथ्वी की जलवायु में बड़ा परिवर्तन हो सकता है, जिसके असर से समुद्र तल की उचाई बढ़ना, बाढ़ आना, जमीन का धंसना, अकाल पड़ना और जंगलों में आग जैसी आपदाएं बढ़ जायेगी। वैज्ञानिक इसके लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को जिम्मेदार मानते हैं।
सभी हिल स्टेशन अब कंकरीट के जंगल में तब्दील होते जा रहे हैं। हर हिल स्टेशन टूरिस्ट के आवागमन से क्षुब्ध हैं। प्रतिदिन कम से कम 3 - 4 हजार टूरिस्ट वाहनों के आवागमन से परेशान हैं। हिल स्टेशन पर इतना बड़ा परिवर्तन हो रहा है। आज पहाड़ों ओर वृक्षों को काट के रास्तों को चौड़ा किया जा रहा है। बड़े-बड़े रिसाॅटर्स और होटल का निर्माण, अनियंत्रित विकास, ऑटोमोबाइल प्रदूषण, नंन-ड़िग्रेड़बल कचरा हमारी प्रकृती की सांसें घोंट रहा है।
प्रकृतिक संसाधनों का व्यापक अंधाधुंध उपयोग हो रहा है। पहाड़ जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे संवेदनशील परिस्थिति के तंत्र में से हैं, किसी भी निवास की तुलना में तेजी प्रभावित होते हैं। हम नदियों को अपने फायदे के हिसाब से मोड़ने का सोच रहे हैं, बांध बना रहे हैं। बांध का पानी अक्षय ऊर्जा प्रदान करता है ओर बाढ़ को रोकता भी है परन्तु दुर्भाग्य से बांध जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को भी खराब करते हैं। यह ग्रीन हाउस गैसों को छोड़ते हैं। आदेभुमि ओर महासागर के कार्बन सींक को नष्ट करते हैं। आवासों को नष्ट करते हैं, समुद्र के स्तर को बढ़ाते हैं, पानी को बरबाद करते हैं।
आज विश्व के तमाम देश चाहे कितने भी विकसित हो या विकासशील हों परन्तु विगत वर्षों में आईं आपदाओ से हमें समझना चाहिए कि प्रकृती कितनी बड़ी है ओर हमारे काबू से बाहर है, हम उससे छेड़ - छाड़ नहीं कर सकते। प्रकृति जब अपना रौद्र रूप दिखाती है मानव अपने आप को कितना असहाय महसूस करता है।
जब विश्व भर में विकास की प्रक्रिया का प्रारम्भ हुआ होगा तब शायद ही हमें ज़रा भी अन्दाजा होगा कि इस अनियन्त्रित, असंतुलित एवम अनियमित विकास से हम विनाश का मार्ग बना रहे हैं। आज हम विकास की चरम अवस्था पार कर चुके हैं। अगर हम अभी भी नहीं सचेत हुए तो हमें इस विकास की कीमत सृष्टि के विनाश से चुकानी होगी, पृथ्वी का पर्यावरण नष्ट हो जायेगा।
हर साल पूरे विश्व में 5 जून को पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामित यह दिवस पर्यावरण के प्रति अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर राजनैतिक और सामाजिक जागृति लाने के लिए मनाया जाता है पर इस सबके लिए बहुत जरूरी है द्रढ इच्छा शक्ति की जो सरकार के साथ साथ हर मनुष्य में होनी चाहिए वरना पर्यावरण के नियन्त्रण तथा विकास को टिकाए रखने की जिम्मेदारी ना निभाने से पुरे विश्व को इसकी किमत चुकानी होगी।।
कुछ विगत वर्षों में आईं आपदाएं --
1991 - उतराखण्ड भूकंप
1998 - मालपा भूस्खलन
1999 - चमोली भूकंप
2013 - उतराखण्ड बादल फटना
2021 - उतराखण्ड ग्लेशियर का टूटना
No comments:
Post a Comment