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स्त्रियों के प्रति बढ़ते अपराध

   स्त्रियों के प्रति बढ़ते अपराध 

                             “  देवेश चतुर्वेदी “


स्त्रियों के प्रति बढ़ते अपराध

भारत में प्राचीन काल से ही स्त्रियों को देवी का दर्जा प्राप्त है और उसी लिये स्त्रियों के नाम के साथ “ देवी “ उपनाम जोड़ा जाता रहा है । स्त्री लक्ष्मी भी है और सरस्वती भी है । स्त्री काली भी है और दुर्गा भी है अर्थात् चारों देवियों के गुणों का समावेश स्त्रियों में माना जाता रहा है । 

किसी भी सभ्यता की उपलब्धियों एवं श्रेष्ठता का मूल्यांकन करने का सर्वोत्तम आधार वहाँ स्त्रियों की सामाजिक स्थिति का अध्ययन करने में ही होता है । समाज में सुख एवं शांति का वातावरण रखने के लिए स्त्रियों के प्रति हमारे मन में सम्मान की भावना होनी ही चाहिए । 

परन्तु हाल ही में मणिपुर में दो स्त्रियों को निर्वस्त्र कर के प्रताड़ित करने की घटना हो या राजस्थान बंगाल या अन्य राज्यों में स्त्रियों के साथ हो रहे अत्याचार दुर्व्यवहार एवं दुष्कर्म की घटनाओं ने जन मानस को विचलित कर दिया है । 

चिंता की बात है कि लोगों में शिक्षा स्तर की वृद्धि के बावजूद भी इतनी घिनौनी हरकत कैसे हो सकती है । स्त्रियों के खिलाफ दुनिया भर में अत्याचार एक व्यापक समस्या बनती जा रही है । प्रत्येक दिन एसिड़ फेंकना दुष्कर्म या दुष्कर्म के उपरान्त हत्या करना अथवा जला देना आदि सुनकर दिल दहल उठता है । यह क्रूरता की पराकाष्ठा है ।

स्त्रियों पर हो रहे अत्याचार के लिये समाज ही जिम्मेदार है ।  जब जन प्रतिनिधियों की सदन में स्त्रियों पर हो रहे अत्याचार और अनाचार के विषय में चर्चा देखते हैं तो मात्र राजनीति होती है और एक दूसरे पर आरोप एवं प्रत्यारोप ही करते हुए पाते हैं ।

इन अत्याचारों को समाप्त करने के लिए राजनीतिज्ञ कानून एवं समाज को अब गंभीरता से अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए ताकि स्त्रियों का मानसिक एवं शारीरिक शोषण रोका जा सके ।

इस के लिए कानूनों एवं न्याय व्यवस्था में व्यापक सुधार लाने की आवश्यकता है । पुलिस व्यवस्था में भी आमूल चूल सुधार एवं उच्च स्तरीय प्रशिक्षण की आवश्यकता है ।

स्वयंसेवी संगठनों को सरकार की तरफ से प्रोत्साहन दिया जाना चहिए ताकि स्त्रियों के विरुद्ध होने वाले अपराधों एवं अत्याचारों को रोकने के लिए एक सशक्त जनमत का निर्माण किया जा सके ।

स्त्रियों के लिए बेहतर अवसर पैदा करने के लिए समाज में जागरूकता पैदा करना अत्यन्त आवश्यक है । साथ में नई पीढ़ी को नैतिक एवं मानवीय मूल्यों की शिक्षा गंभीरता से दी जानी चाहिए । भोग वादी प्रवृत्ति के बुरे प्रभाव को कम करने के लिए प्राचीन भारतीय आदर्शों को फिर से स्थापित किया जाना चाहिए ।

जहाँ देवियों की पूजा करते हैं । हमारे देश भारत को जिसे भारत माता के रूप में देखते हैं और जिस देश में गंगा यमुना सरस्वती गोदावरी आदि नदियों की पूजा माँ के रूप में करते हों वहाँ स्त्रियों के ऊपर इस प्रकार के अत्याचार दुर्भाग्य पूर्ण हैं ।

इन घटनाओं पर शीघ्र गंभीरता से चिन्तन करने की आवश्यकता है और हर व्यक्ति को अपने अन्दर झांकने की जरूरत है ।

इतिहास इस बात का साक्षी है कि जिस समाज में नारी जाति पर अत्याचार हुए उस समाज का हमेशा पतन ही हुआ है ।

संस्कृत में कहा गया है –

यत्र नार्यस्तू पूज्यंते

रमन्ते तत्र देवता:

अर्थात जहाँ पर नारी की पूजा होती है 

वही देवता वास करते हैं ।

युवक मासिक पत्रिका
युवक 
मासिक पत्रिका 









# नशीले मादक द्रव्य

# नशीले मादक द्रव्य हमारे समाज में घुलता जहर

                        " देवेश चतुर्वेदी "



भारत दुनिया के दो प्रमुख अवैध मादक उत्पादन क्षेत्रों के मध्य में स्थित है। पश्चिम में गोल्डन क्रीसेंट एवं पूर्व में गोल्डन ट्रायंगल जो भारत को नशीली दवाओं के अवैध व्यापार का उपभोक्ता केंद्र बनाते हैं।
 गोल्डन क्रीसेंट में अफगानिस्तान ईरान और पाकिस्तान शामिल हैं। वहीं गोल्डन ट्रायंगल में म्यानमार लाओस और थाईलैंड के क्षेत्र शामिल हैं और यह दक्षिण पूर्व एशिया का मुख्य उत्पादक क्षेत्र है एवं यूरोप और उत्तरी अमेरिका के लिए नशीली पदार्थों की आपूर्ति का सबसे पुराना मार्ग है। पिछले कुछ वर्षों में कुछ अन्य मार्ग भी विकसित हुए हैं तथा तस्करी के नए तरीके भी ईजाद किए जा रहे हैं। 


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नशीले मादक द्रव्य 

 
भारत में भांग चरस गांजा आदि तो उपलब्ध थे ही पर अब दुनिया भर के बाजारों पर राज कर रहे सिंथेटिक द्रव्य भी आसानी से उपलब्ध हो रहे हैं। 
 भारत की सीमाओं पर रहने वाले गरीब अशिक्षित बेरोजगार युवाओं की मदद से तस्कर आसानी से इन अवैध मादक द्रव्यों को ले जाने में सक्षम हैं। पूरे कार्टेल को ट्रैक करना एवं किंगपिन तक पहुंचना बहुत ही मुश्किल हो जाता है क्योंकि इस प्रक्रिया में शामिल अधिकांश युवाओं के गिरफ्तार होने पर भी इन्हें पूरे संचालन की बहुत ही कम या कोई भी जानकारी नहीं होती है। सीमा की प्रकृति एवं भूगोल को ध्यान में रखने के साथ-साथ मादक द्रव्यों के उत्पादन मांग एवं आपूर्ति के आधार पर विभिन्न सीमाओं पर अलग-अलग तस्करी के तरीके अपनाए जाते हैं। 
 नशीले पदार्थों के सेवन से अनेक युवाओं का जीवन बरबाद हुआ है पर फिर भी युवा पीढ़ी इसका काफी संख्या में सेवन कर रहे हैं। 
मादक द्रव्यों के सेवन से किसी भी प्रकार से कार्य क्षमता या कुशलता में वृद्धि  नहीं हुई है।  बस कुछ ही क्षणों के लिए इसके सेवन करने पर एक विचित्र प्रकार के आनन्द की अनुभूति होती है  परन्तु यह आनन्द का नशा अल्पकालीन ही है तथा व्यक्ति को धीरे-धीरे मौत के जाल में ले जा रहा होता है। इस नशे से दिल का दौरा, स्ट्रोक, कोमा, हाइपोथर्मिया, रक्त विकार, पैनिक अटैक जैसे रोग हो रहे है। यह एक ऐसा दुष्चक्र है जो केवल एक व्यक्ति को ही नहीं बल्कि पूरे समाज को प्रभावित करता है। मादक द्रव्य का उपयोग करने वाले व्यक्ति के लिए स्पष्ट रूप से सोचना एवं सही निर्णय लेना अकसर कठिन हो जाता है। एक बार किसी को इसकी लत पड़ जाए तो उसका इस चक्र से निकलना बहुत ही कठिन होता है। 
 यह कोई छुपा तथ्य नहीं है कि नशीले द्रव्यों के उपयोग की समस्याएं दिन प्रतिदिन बढ़ रही हैं। गोवा रेव-पार्टी का सबसे बड़ा केंद्र है जहां देश के निवासियों के साथ-साथ विभिन्न देशों के विदेशी भी बड़ी मात्रा में शामिल होते हैं। देश के कई अन्य भागों में भी एसी पार्टियों में मादक द्रव्य का सेवन किया जा रहा है।
 नशीली दवाओं के व्यापार से प्राप्त धन का उपयोग आतंकवाद, मानव तस्करी आदि अवैध व्यवस्थाओं के लिए किया जाता है। आतंकवाद के लिए बहुत अधिक मात्रा में धन की आवश्यकता होती है और अधिकतर इन्हें नशीले मादक द्रव्यों की तस्करी के संचालन द्वारा वित्त पोषित किया जाता है। दुनिया के प्रमुख अफीम एवं चरस की खेती वाले क्षेत्र भी लश्कर-ए-तैयबा जैश-ए-मोहम्मद अल बद्र   और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे आतंकवादी संगठनों के क्षेत्र हैं जहाँ से इन संगठनों को संचालित करने के लिए तस्करी द्वारा धन प्राप्त किया जाता है।    
 विभिन्न अध्ययनों एवं अनेकों मीडिया रिपोर्टों से साफ संकेत मिल रहा है कि देश में नशीले द्रव्यों की खपत और उसकी तस्करी में दिन प्रतिदिन वृद्धि  दिख रही है। 
 नशीले द्रव्यों के दुरुपयोग को रोकने और सकारात्मक रूप से सहायता करने के लिए बहुत सारे कदम उठाए जा रहे हैं। केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो और नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के साथ राजस्व खुफिया निदेशालय, केंद्रीय जांच ब्यूरो, सीमा शुल्क अयोग और सीमा सुरक्षा नशीली दवाओं के संचालन की रोकथाम करने का काम कर रही है। लेकिन अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है। 
 प्रशासन को नशीले पदार्थों की तस्करी एवं उनके सेवन के प्रति जीरो टालरेन्स के साथ साथ कड़े कानून एवं सख्त सजा का प्रावधान करने की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त विज्ञापन एवं सोसिअल मीडिया के माध्यम से समाज में मादक द्रव्यों के सेवन से होने वाले दुष्परिणामों के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए।

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# गौ सेवा

# गौ सेवा हमारा परम धर्म 

                    " देवेश चतुर्वेदी "


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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गौ को साक्षात विष्णु का रूप, भगवान भोलेनाथ का वाहन नन्दी माना गया है। भगवान श्री कृष्ण को सारा ज्ञान कोष गौचरण से ही प्राप्त हुआ था। ॠग्वेद ने गाय को उघन्या कहा है, यजुर्वेद कहता है कि गौ अनुपमेय है और अर्थवेद में गाय को संपत्तियों का घर कहा गया है। हिन्दु धर्म के अनुसार गाय में 33 करोड़ देवी देवताओं का निवास है।
भगवान कृष्ण ने श्रीमद्र भगवतगीता में कहा है -
  धतेनामस्मि कामधेनु, 
  अर्थात में गायों में कामधेनु हूँ ।
भारत में सबसे बड़ा धन गोधन को और  सर्वश्रेष्ठ लोक को गौलोक या वैकुण्ठ कहा जाता है। 
गौ सेवा के बिना विश्व का कल्याण संभव नहीं है, मनुष्य जाति का जीवन गौ माता का कर्जदार है क्योंकि जन्म देने वाली माँ के पश्चात गौ माता का दूध ही सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसलिए हिन्दू धर्म में गाय को माता के रूप में माना जाता है और भोजन पकाते समय पहली रोटी गौ माता की ही होती है। 
शास्त्रों और विद्वानों के अनुसार कुछ पशु पक्षी ऐसे होते हैं उसमें से गाय भी एक है, माना जाता है उनका अगला जन्म मनुष्य योनि में होता है। 
वैज्ञानिक कहते कि गया एक ऐसा प्राणी है जो आंक्सीजन ग्रहण करता है और आक्सीजन ही छोड़ता है जब की मनुष्य एवं अन्य प्राणी आंक्सीजन लेते हैं और कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ते हैं। 
हिन्दु धर्म में गाय के महत्व के आध्यात्मिक, धार्मिक और चिकित्साय कारण भी रहे हैं। गया एक मात्र ऐसा पशु है जिसका सब कुछ मनुष्य के किसी न किसी प्रकार से काम में आता है। गया का दूध, गौमूत्र, गोबर के अलावा दूध से निकला मक्खन, घी, दही, छाछ आदि सभी बहुत ही उपयोगी और गुणवक्ता से परिपूर्ण है। गया का दुध पीने से शक्ति का संचार होता है और हमारे रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है। गया के दूध से रेडियो एक्टिव विकिरणों से भी बचा जा सकता है। गया के घी से हवन करने पर लगभग एक टन आक्सीजन का उत्पादन होता है और तीस मीटर तक 96% कीटाणु आदि नष्ट हो जाते हैं। यही कारण है कि मंदिरों में एवं घर की पूजा में घी का दीपक जलाने तथा धार्मिक समारोहों में हवन करने की प्रथा का प्रचलन है। धी का सेवन करने से पूरा शरीर पुष्ट बनता है साथ-साथ
प्रतिरोध क्षमता को बढाता है। गया के घी की दो तीन बूंदे नाक में डालने से माइग्रेन का दर्द कम हो जाता है। सभी के लिए लिए घी का सेवन स्वस्थ्य के लिए बहुत ही उपयोगी है। आयुर्वेद में घी को औषधि का महत्व दिया गया है। गया के दूध का दही हमारे पाचन तंत्र को सेहतमंद बनाए रखने में बहुत ही कारगर सिद्ध होता है। दही में सुपाच्य प्रोटीन एवं लाभकारी जीवाणु होते हैं। छाछ पीने से पाचन तंत्र मजबूत बनाता है और पेट की गर्मी शांत होती है।  दही को पेट से जुड़े विभिन्न प्रकार के रोग में उपयोगी पाया गया है। गौमूत्र का उपयोग औषधि के रूप में भी बहुत उपयोगी है। गौमूत्र को कई प्रकार की दवाइयाँ बनाने में प्रयोग किया जाता है क्योंकि इसमें रोगाणुओं को मारने की क्षमता होती है। वर्तमान में जीवन कृषि में रासायनिक कीटनाशकों से होने वाले दुष्परिणामों को झेल रहा है ऐसे में गौमूत्र का उपयोग कीटनाशक दवाऐं बनाने में उपयोग हो रहा है। भारत में गाय के गोबर को भी बेहद उपयोगी माना जाता है। गोबर गैस प्लांट के द्वारा गैस ऊर्जा का उत्पादन किया जाता है।
पेट्रोल, डीजल, कोयला प्राकृतिक सीमित मात्रा में हैं पर गोबर से हमें यह ऊर्जा सदैव मिलती रहेगी। गया के गोबर से बनी खाद कृषि के लिए बहुत ही उपयुक्त है परन्तु अब रासायनिक खादों का उपयोग कृषि में होने से कैंसर जैसी विभिन्न बीमारियां बढ़ रही हैं। गया का गोबर कच्चे घरों को लीपने के लिए प्रयोग किया जाता रहा है वहीं गाय के गोबर से बने कंडे गाँव में चूल्हा में जलाने एवं हवन जैसे पवित्र कार्यों में उपयोग किए जाते हैं इससे वातावरण शुद्ध हो जाता है और घर के आसपास मौजूद कीटाणु एवं विषाणु समाप्त हो जाते हैं। अगर कोई मानसिक रूप से ग्रसित है या बहुत ज्यादा तनाव में है तो एक बार बस गौशाला में जाकर गाय का चेहरा देखे उनकी आखों में देखे या उसके बछड़े को देखे तो उस मनुष्य का तनाव पल भर में दूर हो जायेगा क्योंकि गाय में वात्सल्य और ममत्व है।
गौ माता जहाँ पर बैठती है वहाँ के वातावरण को शुद्ध करके सकारात्मकता ऊर्जा से भर देती है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी गौ माता को राष्ट्रीय पशु घोषित किये जाने का सुझाव दिया है जो बहुत ही स्वागत योग्य है।
अब उत्तर प्रदेश में भी लगातार गौवंश के सरक्षण और संबर्धन को लेकर काफी काम किया जा रहा है। जर्मनी की लगभग 61 वर्षीय फ्रेड़रिक इरिना ब्रइनिगं मथुरा के गोवर्धन में रहती हैं जिन्हें लोग प्यार से अंग्रेजी दीदी या सुदेवी माता जी के नाम से भी जानते हैं। वह पहले जर्मनी से उत्तर प्रदेश में मथुरा भ्रमण के लिए आई और यहाँ की गौशाला में गौ सेवा करके उन्हें एक अलग ही आनन्द की अनुभूति हुई और फिर उन्होंने मथुरा में गौ सेवा करने का मन बना लिया। उन्हें गौ सेवा के लिए हाल ही में 70 वें गणतंत्र दिवस के पर्व पर पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। 
श्री राजेन्द्र कुमार अग्रवाल निवासी बीकानेर राजस्थान/ प्रवासी कोलकाता अपने व्यवसाय के साथ-साथ वृन्दावन, उत्तर प्रदेश और बीकानेर, राजस्थान में स्थित कुछ गौशलाओं को आर्थिक अनुदान दे कर अपनी सेवा प्रदान कर रहे हैं। वह बताते हैं कि बीकानेर, राजस्थान की नंदनवन गौशाला सेवा समिति की खास बात यह है कि यहाँ विकलांग, अंधी दुर्घटनाग्रस्त व बीमार गायों की देखभाल की जाती है। राजेन्द्र जी को गौ सेवा से सुख और शांति की अनुभूति होती है। वह अपने समय और सामर्थ्य के अनुसार पिछले 6 साल से गौ सेवा से जुड़े हुए हैं और वर्तमान में युवाओं के बढ़ रहे रूझान को देख कर काफी खुश हैं।
आज हमारे देश में गाय की जो उपेक्षा एवं दुर्दशा हो रही है उसे देखते हुए गौधन के रक्षण और संबर्धन के लिए समाजिक चेतना की आवश्यकता है। समाज के प्रत्येक व्यक्ति को गौ सेवा में रूचि लेनी चाहिए। गौ सेवा करने वाला व्यक्ति पुण्य अर्जन के साथ ही मानसिक शांति भी प्राप्त करता है। गौ संबर्धन से देश वा समाज स्वस्थ्य एवं सम्पन्न बनेगा। सुदेवी माता जी, राजेन्द्र जैसे लोग यहाँ तक की श्री कृष्ण भगवान जब गौ सेवा कर सकते हैं तो आप क्यों नहीं ?

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# कर्म

# हमारे कर्म ही निर्धारित जीवन की दिशा 

                                     " देवेश चतुर्वेदी "


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संसार में कभी भी कोई व्यक्ति सहज ही किसी के लिए प्रिय या अप्रिय नहीं हो जाता है। हमारे कर्म ही हमें हमारे उत्थान या पतन की ओर ले जाते हैं।
 कर्म क्या है ? 
हम सभी सुनते हुए आ रहे हैं कि ‘जैसी करनी वैसी भरनी’ लेकिन यह कितना सच है धार्मिक विश्वास के बहार यह साबित करना कठिन हो जाता है क्योंकि कर्म एक ऐसी मान्यता है जो हिन्दू धर्म बौद्ध धर्म और जैन धर्म की प्रथा से आती है।
 कर्म अच्छे कार्यों एवं अच्छे विचारों के द्वारा प्राप्त होते हैं। मनुष्य आपके साथ कैसा व्यवहार करता है यह उसका कर्म है एवं आप कैसी प्रतिक्रिया देते हैं यह आपका कर्म है। जब कोई व्यक्ति आपसे मधुर भाषा का उपयोग करते हैं तो आप प्रसन्नता महसूस करते हैं और जब कोई आपसे अप्रिय वचन कहता है तो आप व्याकुल हो उठते हैं। इसलिए हमेशा याद रखें कि कर्म निःस्वार्थ प्रेम पर आधारित है।
 हमारे कर्म ही हमारे जीवन को निर्मल एवं दयालु बनाते हैं। अधर्म से पापी फल मिलते हैं जिन्हें हम पाप कहते हैं एवं अच्छे कर्मों से अच्छे फल मिलते हैं जिन्हें हम पुण्य कहते हैं। 
 कर्म ही यह निर्धारित करता है कि मनुष्य का पुनर्जन्म कहां एवं कैसा होगा। यदि किसी मनुष्य के पास अच्छे कर्म हैं तो वह स्वर्ग लोक में जायेगा और यदि उसके कर्म बुरे हैं तो अवश्य ही नरक लोक में तड़पेगा। 
 कर्म तीन श्रेणी में होते हैं:
 * संचित कर्म: संचित का अर्थ है एकत्रित या इकट्ठा होना। तो संचित कर्म मनुष्य के किए गए अनेकों जन्मो के कर्मों का संग्रह है। अर्थात व्यक्ति के अभी तक किए गए कर्मों का कुल योग हुआ।
 * प्रारब्ध कर्म: प्रारब्ध का अर्थ भाग्य है। प्रारब्ध कर्म संचित कर्म का वह भाग है जो हम जीवन में अनुभव करेंगे। हमारे कर्मों के अनुसार हमें किसके यहां जन्म मिलेगा यह प्रारब्ध कर्म से निर्णय होता है यानि व्यक्ति के जीवन में जो भी अच्छा-बुरा घटित होगा एवं जिन पर उस व्यक्ति का कोई नियंत्रण नहीं होगा वो प्रारब्ध है। इन पर नियंत्रण इसलिए नहीं रहेगा क्योंकि भगवान ही हमें प्रेरित कर रहे होगे हमारे कर्मों का फल भोगने के लिए। इसलिए जो प्रारब्ध अच्छे हैं वह हमारे अच्छे कर्मों का फल है और जो प्रारब्ध बुरे हैं वह हमारे बुरे कर्मों का फल है।  * क्रियमाण कर्म: क्रियमाण का अर्थ है वह जो किया जा रहा है अथवा वह जो हो रहा है। व्यक्ति जो क्रियमाण कर्म करता है वह ही संचित कर्म में जाकर जमा होता रहता है। यानि वह कर्म जो व्यक्ति ने किया है कर रहा है या करेगा।
 व्यक्ति को छोटे से छोटे भी अच्छे कार्यों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए यह सोचकर कि वे किसी लाभ के नहीं हैं। परन्तु याद रखिए अंत में बूंद-बूंद से ही घड़ा भरता है।
सकारात्मक एवं नकारात्मक आदतें समय के साथ उत्पन्न होती हैं जिसके कारण लोगों में अच्छे या बुरे कर्म बनते हैं। इसको समझने की दृष्टि से गुटका या धूम्रपान एक सबसे अच्छा उदाहरण हो सकता है।
जब हम पहली बार सिगरेट पीते हैं तो इस से ही आगे भी सिगरेट पीने की सम्भावना निहित हो जाती है एवं हम जितना धूम्रपान करते हैं धूम्रपान करने की प्रवृत्ति उतनी ही अधिक बढ़ती जाती है और अंत में हम बार-बार सिगरेट सुलगाने के आदि हो जाते हैं। निरन्तर धूम्रपान से हमारे शरीर के भीतर की भौतिक सम्भावनाएं भी प्रभावित होती हैं जैसे की धूम्रपान के कारण कैंसर का होना। यह दोनों ही हमारे पिछले बाध्यकारी कृत्यों का ही परिणाम है और इसे ही कर्मों का परिपक्व होना कहा जा सकता है।
 कर्म का अर्थ हम यह भी मान सकते हैं कि ‘मनुष्य जो बोता है वही काटता है’। लेकिन हमारे लिए यह समझना उतना आसान नहीं होता क्योंकि हमारे अलग-अलग कर्म अलग-अलग समय पर फल देते हैं। जैसे किसी भी बीज को वृक्ष बनने में समय लगता है वैसे ही कर्म करने और उसका फल प्राप्त होने में भी समय लगता है।
 कर्म ही मनुष्य को सफलता सम्मान यश और कीर्ति प्रदान करता है इसलिए कर्मशील व्यक्ति कभी उदास नहीं रहता क्योंकि कर्मशीलता और उदासी कभी भी साथ-साथ नहीं रह सकते हैं। 
 पूर्ण निष्ठा से किया कर्म हमारी चेतना का विकास करता है।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
 मा कर्मफलहेतु र्भूर्मा ते संगोस्त्वकर्मणि ।।
 अर्थ:  कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है।
कर्म के फलों पर कभी नहीं। इसलिए कर्म को फल के लिए मत करो।
हमें सिर्फ अच्छा बनना एवं अच्छा करना है। न तो अतीत में देखें और न भविष्य की चिंता करनी है। अगर हम अपने वर्तमान कर्म को सफलता से करें तो भविष्य अपने आप संवर जाएगा।

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# अंगदान

# महापुण्य का कार्य है अंगदान 

                                 " देवेश चतुर्वेदी "




प्रतिवर्ष 13 अगस्त को विश्व अंगदान दिवस मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य लोगों में अंगदान के प्रति जागरूकता पैदा करना क्योंकि अभी भी अंगदान लेकर जागरूकता की कमी है।
सभी अंगों को मृत्यु के उपरांत खाक में मिल जाना तय है। यह सभी के लिए कितने पुण्य बात होगी कि मृत्यु के पश्चात् हमारे अंग किसी को जिवनदान दे सकें।
अंगदान कभी भी किया जा सकता है। कोई भी व्यक्ति बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक अंगदान कर सकता है वशर्ते उनके अंग स्वाथ हों। 
हमारे देश में ही हर वर्ष लाखों लोगों की मृत्यु शरीर के विभिन्न अंग खराब होने से हो जाती है। 
अब देश में ही लिवर किडनी और हार्ट के ट्रांसप्लांट की सुविधा उपलब्ध है। किडनी तथा लंग्स और लिवर के कुछ हिस्सों को जीवित व्यक्ति भी दान कर सकते हैं। इसके अलावा आंखों समेत बाकी तमाम अंगों को मृत्यु के पश्चात् भी दान किया जा सकता है।
यह एक अच्छा संकेत है कि धीरे-धीरे लोग अब अंगदान के प्रति जागरूक हो रहे हैं एवं अस्पतालों में भी शव दान के लिए गंभीरता से कार्य किया जा रहा है।
यह जानक आश्चर्यचकित होगें की हमारे देश में सबसे कम उम्र की अंगदान करने वाली बच्ची सिर्फ 20 महिने की थी जिससे पाँच लोगों को जीवन दान मिला।
दिल्ली में धनिष्ठा नमक्त 20 महिने की बच्ची पहली मंजिल की बालकनी से गिर गई। अस्पताल में तमाम कोशिशों के बावजूद उस बच्ची को नहीं बचाया जा सका। उसे ब्रेन डैड घोषित कर दिया गया परन्तु उसके शरीर के बाकी सभी अंग ठीक से कार्य कर रहे थे। हृदय लिवर दोनों गुर्दे एवं दोनों काँर्निया अस्पताल में निकाले गए और अलग-अलग पाँच मरीजों में ट्रांसप्लांट किये गये। धनिष्ठा मरणोपरांत देश की सबसे छोटी दानदाता है जिसके अंगदान से पाँच मरीजों को जिवनदान मिला। उसके अभिभावक का मनना है कि बच्ची को खो दिया लेकिन अंगदान करके एक तरह से वह आज भी जीवित है।
इसी तरह महानगर कोलकाता की 43 वर्ष की डाँक्टर संयुक्ता श्याम राय की अचानक तबियत खराब हो गई। अस्पताल में उसे ब्रेन डैड घोषित कर दिया गया।
संयुक्ता के परिजनों ने उनके अंगों को दान करने का निर्णय लिया। उनकी दोनों  किडनी लीवर और काँर्निया को अलग-अलग मरीजों में ट्रांसप्लांट किया गया।
डाक्टर संयुक्ता ने अपने पेशेगत जीवन में कई लोगों को नया जीवन दिया परन्तु मरणोप्रांत भी वे कई लोगों को नया जीवन दे गयी।
अंगदान एक बहुत ही श्रेष्ठ पुण्य का कार्य है। इससे अच्छा क्या हो सकता है कि अपना जीवन पूर्ण करने के पश्चात् आप कई अन्य व्यक्तियों को अपने अंगों को दान करके नया जीवन दे सकें। 
इसलिए सभी व्यक्तियों को आगे आकर अंगदान करना चाहिए ताकि अनेक अंग पीड़ित व्यक्तियों को जीवन मिल सके।

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# नारी सशक्तिकरण

# राष्ट्र विकास मैं आवश्यक है नारी सशक्तिकरण

                             " देवेश चतुर्वेदी "




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नारी सशक्तिकरण का अर्थ है महिलाओं का समग्र विकास । जब हम समग्र विकास की बात करते हैं तो वह तभी संभव हो सकता है जब महिलाओं की शैक्षिक आर्थिक सामाजिक एवं राजनैतिक स्थिति में सुधार हो । किसी समाज के प्रगतिशील होने के लिए यह आवश्यक है महिलाएं सशक्त बने वह समाज में बराबरी की भागीदारी करें और समाज के अंदर उनका पूर्ण सम्मान हो। 
भारतीय संस्कृति मैं नारी को बहुत उच्च सम्मान दिया गया है। मनुस्मृति मैं कहा गया है  -
“ यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता :।
पूज्यन्ते  सर्वास्तत्राफला: क्रिया: ।।“
अर्थ है कि जहां स्त्रियों की पूजा होती है, सम्मान दिया जाता है वहां देवताओं का निवास रहता है। और जहां उनका सम्मान नहीं होता वहां पर अच्छे कर्म विफल हो जाते हैं। निष्कर्ष यही है नारी शक्ति का सम्मान एवं विकास ना होने पर समाज का पतन होता है।
यदि हम अपने इतिहास के पीछे झांक कर देखें तो पाएंगे कि हर युग में प्रतिभा वान महिलाएं रही हैं और हर युग में उन्होंने अपनी प्रतिभा से समाज में मिसाल प्रस्तुत की है जैसे – सीता, सावित्री, द्रोपदी, गार्गी इन पौराणिक देवियों से लेकर रानी दुर्गावती, रानी लक्ष्मीबाई, अहिल्याबाई, रानी चेन्नम्मा,रानी पद्मिनी से लेकर आधुनिक भारत की अनेक महिलाओं ने देश को विश्व भर में गौरवान्वित किया है। कल्पना चावला ने धरती पर ही नहीं अपितु अंतरिक्ष में भी अपना परचम लहराया है। 
महिलाओं की शिक्षा उनकी सामाजिक जागरूकता और सर्वोन्नमुखी उन्नति न सिर्फ  उनकी गृहस्थ जीवन के विकास में सहायक होती है बल्कि उनकी उन्नति संपूर्ण देश के विकास में भी अहम भूमिका निभाती है।
बेटियों को बचपन से ही सिखाया जा रहा है कि पाक कला और गृह कार्य मैं निपुणता ही एक नारी के लिए परिपूर्णता है। लेकिन अब समय बदल चुका है। बदले हुए समय के साथ चलना होगा। सामाजिक और पारिवारिक परिस्थितियां बदल रही हैं। महिलाओं का आत्मनिर्भर होना आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। अगर समाज का हर वर्ग पुरुष नारी दोनों सुशिक्षित स्वावलंबी बने तो देश भी तेजी से आगे बढ़ेगा। महिला और पुरुष दोनों को कंधे से कंधा मिलाकर काम करने की आवश्यकता है। यह एक अच्छा संकेत है कि समाज में युवकों एवं युवतियों के बीच अभिभावकों की ओर से संकुचित विचारधारा ख़त्म हो रही है। आज अभिभावक लड़का हो या लड़की दोनों को समान रूप से अच्छी से अच्छी शिक्षा देने का प्रयत्न करते हैं। लड़कियों में भी शिक्षा के प्रति ज्यादा रुचि परिलक्षित हो रही है और वे अनेक क्षेत्रों में अपनी पहचान स्थापित कर रही हैं।
आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर महिलाएं अपने बच्चों के यह आदर्श बन जाती हैं और सदियों पुराने लड़का और लड़कियों के बीच के रहे भेदभाव को दूर करती है। मातृशक्ति को सृजन की शक्ति माना जाता है। अर्थात स्त्री से ही मानव जाति का अस्तित्व है। भारत में महिलाओं की स्थिति में पिछले कुछ दशकों में कई बड़े बदलावों को देखा गया है। प्राचीन काल में पुरुषों के साथ बराबरी की स्थिति में से लेकर मध्य युग काल में निम्न स्तरीय जीवन परिस्थितियाँ वस जीने के लिए मजबूर रही है। आधुनिक भारत में महिलाएं राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, न्यायाधीश आदि जैसे शीर्ष स्थानों पर आसीन हुई हैं। फिर भी अनेक महिलाओं को आज भी सहयोग और सहायता की आवश्यकता है। आज भी सामान्य एवं ग्रामीण महिलाएं अपने घरों में रहने के लिए बाध्य हैं क्योंकि उन्हें सामान्य शिक्षा भी उपलब्ध नहीं हो पाती है। हमारा देश काफी तेजी और उत्साह के साथ प्रगति कर रहा है और इसे बरकरार रखने में हमें लैंगिक असमानता को दूर करके महिलाओं के लिए अच्छी शिक्षा सुनिश्चित करना बहुत आवश्यक है। उनके अधिकारों और मूल्यों को महत्व देते हुए सभी महिला विरोधी विचारधारा को समाज से हटाने की आवश्यकता है जैसे - दहेज प्रथा, यौन हिंसा, देह तस्करी आदि।
सभी महिलाओं का सम्मान करना चाहिए एवं उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए क्योंकि आज की नारी अब जागृत और सक्रिय हो रही है।
21वीं सदी भारतीय नारी जीवन में सुखद संभावनाएं लाने की सदी होनी चाहिए ।
हमें समझना होगा की बेटी के सेटल होने का मतलब अब उसका विवाह नहीं बल्कि उसका अपने पैरों पर खड़ा होना हो। यह कहावत गलत नहीं है कि अगर एक महिला शिक्षित होती है तो एक पूरा परिवार शिक्षित होता है। इसलिए हर महिला को सबसे पहले अपनी शिक्षा पूर्ण करनी चाहिए। शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात स्वावलंबी बनना चाहिए ताकि वह सामाजिक आर्थिक नैतिक एवं राजनीतिक रूप से स्वयं को सशक्त बना सके तभी सही अर्थों में होगा “ नारी सशक्तिकरण “ ।