# प्रेरणा बन कर उभरी बस की स्टीयरिंग संभालती कल्पना
" देवेश चतुर्वेदी "
कल्पना मंडल |
महानगर कोलकाता के 34सी बस रूट नोआपाड़ा बस स्टैंड से एसप्लानेड बस स्टैंड तक एक 19 साल की युवती कल्पना मंडल संभालती हैं बस की स्टीयरिंग।
साहसी एवं कर्मठ कल्पना मंडल कोलकाता वासियों के बीच आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं। अक्सर लोग इस अल्प आयु की युवती बस ड्राइवर को देखकर आश्चर्यचकित हो जाते हैं।
कोलकाता के दमदम के नोवापारा की रहने वाली कल्पना मंडल की जिंदगी काफी कठिन रही है। बेहद गरीब परिवार में जन्मी कल्पना घर के हालात ठीक ना होने के कारण माध्यमिक तक ही पढ़ पाई। उनके पिता सुभाष मंडल कई वर्षों से बस चलाकर परिवार का पेट पाल रहे हैं। कल्पना को भी बचपन से बस चलाने का शौक रहा है।
कुछ समय पहले सुभाष मंडल की एक दुर्घटना के कारण पैर में काफी चोट आ गई और मजबूरन बिस्तर पकड़ लिया। परिवार के पास आय का कोई अन्य साधन ना होने के कारण कल्पना ने खुद बस चलाने का निर्णय किया और उनकी मां ने कल्पना का समर्थन किया। लेकिन यह एक युवती की सुरक्षा का मामला भी था। इसलिए जब कल्पना बस चलाती तब माता या बाद में पिता में से कोई ना कोई उसके साथ अवश्य ही होता था। अब जब उनके पिता थोड़ा स्वस्थ हो गए तो पिता-पुत्री दोनों मिलकर बस चलाते हैं। कल्पना के पिता के पैर अभी भी कमजोर हैं इसलिए लंबे समय तक बस नहीं चला सकते। सुबह शाम पिता और दोपहर में पुत्री कार्यभाल संभालती है।
माता-पिता के साथ यात्रियों को भी कल्पना पर गर्व है। वह एक अच्छी और जिम्मेदार ड्राइवर है जिसके कारण ट्रैफिक हवलदार भी कल्पना को स्नेह और सम्मान देते हैं।
कल्पना के परिवार ने 4.40 लाख धनराशि में बस का सौदा किया था और बस के मालिक को मासिक किस्तों में इस राशि का भुगतान कर रहे थे। उन्होंने अब तक 2 लाख धनराशि का भुगतान कर दिया था। इस दौरान इंश्योरेंस केयर के एक अधिकारी को कल्पना मंडल के बारे में जानकारी प्राप्त हुई और उन्होंने कल्पना की मदद करने का फैसला किया। उन्होंने कल्पना के परिवार को बकाया 2.40 लाख की राशि भुगतान कराने में मदद की। कल्पना अब आधिकारिक रूप से बस की मालकिन है।
कल्पना ने कठिन परिस्थितियों में धैर्य और दृढ़ संकल्प दिखाया। वह आज सभी महिलाओं के लिए एक प्रेरणा है एवं आने वाली पीढ़ियों को कल्पना के साहस और कठिन परिश्रम से सीखना चाहिए।
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