# पंचकेदार
" देवेश चतुर्वेदी "
शिवजी भक्तों की आस्था का केंद्र है पांच पौराणिक मन्दिरों का समूह
भारत, नेपाल, तिब्बत, और भूटान के उत्तरी हिस्से मैं हिमालय पर्वत हैं जो पृथ्वी पर सबसे ऊंची और शानदार पर्वत श्रृंखलाओं का केंद्र हैं। इस क्षेत्र के पहाड़ ना केवल भव्य रुप से सुंदर बल्कि अत्यधिक पवित्र भी हैं। हिमालय की इन्हीं तलहटियों एवं ऊंची बर्फ से ढकी चोटियों के मध्य अनेकों तीर्थ स्थल हैं।
प्राचीनकाल से हिमालय की कन्दराओं में ऋषि-मुनियों का वास रहा है और वे यहां समाधिस्य होकर तपस्या करते रहे हैं। भगवान अपने सारे ऐश्वर्य एवं खूबसूरती के साथ यहां पर विघमान हैं। दुनिया भर से लोग यहां की प्राकृतिक सौंदर्य की तलाश में आते हैं।
यही हिमालय के मध्य उत्तराखंड की देवभूमि है यहां भगवान शिव के पवित्र स्थान पंच केदार प्रतिष्ठित हैं। हिंदू ग्रंथों के अनुसार इन पंच केदार के एक बार कोई दर्शन कर ले तो उसके सारे कुल और पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त हो जाता है।
उसी समय से भगवान शंकर की पीठ की आकृति पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं। मान्यता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतरध्यान हुए तो उनके धड़ के ऊपर का भाग काठमांडू में प्रकट हुआ वहां पर पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नभी मद्महैश्र्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इस प्रकार इन चार शिव धामों के साथ केदारनाथ धाम को मिलाकर पंच केदार कहा जाता है।
केदारनाथ धाम : केदारनाथ रुद्रप्रायाग जिले में स्थित है। यह शिव का प्रमुख धाम है और पंच केदार में सर्वप्रथम केदेरेश्र्वर शिव के ही दर्शन किए जाते हैं। केदारनाथ धाम मंदिर तीन तरफ पहाड़ों से घिरा है। एक तरफ 22000 फुट ऊंचा केदारनाथ दूसरी तरफ 21600 फुट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ है 22700 फुट ऊंचा भरतकुंड। यहां पांच नदियों का संगम भी है – मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी। इन नदियों में कुछ का अब अस्तित्व नहीं रहा लेकिन अलकनंदा की सहायक मंदाकिनी आज भी मौजूद है। केदारनाथ के कपाट भक्तों के लिए अप्रैल के महा मैं खुलते हैं व नवंबर के मध्य दीपावली के 1 दिन बाद बंद हो जाते हैं। सर्दियों के मौसम में यहां जाया नहीं जा सकता और यहां के निवासी भी नीचे चले जाते हैं और अपने साथ भगवान केदारनाथ को भी नीचे स्थित उखीमठ में ले जाया जाता है। जहां सर्दियों भर उनकी पूजा अर्चना होती है।
तुंगनाथ मंदिर: रुद्रप्रयाग के चोपता नामक स्थान की चंद्रशिला पहाड़ी पर मंदाकिनी व अलकनंदा नदियों के मध्य में स्थित है। यहां भगवान शिव के बैल रूपी अवतार की भुजाएं प्रकट हुई थी इसलिए इस मंदिर में उनकी भुजाओं की पूजा की जाती है। यह लगभग 11385 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। सर्दियों में भगवान की मूर्ति को मक्कूनाथ में स्थानांतरित कर दिया जाता है। यहां जाने के लिए सबसे अनुकूल मौसम अप्रैल से लेकर सितंबर तक का होता है।
रुद्रनाथ मंदिर : यहाँ पर भगवान शिव के बैल रूपी अवतार की मुखाकृति प्रकट हुई थी इसलिए यहाँ उनके मुख की पूजा की जाती है।
यह उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है और इसकी उचाई 11811 फीट है। इस मंदिर तक पहुंचने का रास्ता बहुत ही दुर्गम है। मंदिर एक गुफा में स्थित है। इस मंदिर की चोटी से आपको नंदा देवी व त्रिशूल की पहाड़ियों के भी दर्शन हो जाते हैं। सर्दियों में भगवान रुद्रनाथ को गोपीनाथ मंदिर में स्थानांतरित कर दिया जाता है। यह मंदिर भक्तों के लिए मई से अक्टूबर माह तक खुले रहते हैं ।
मद्महेश्वर मंदिर : भगवान शिव के बैल रूपी अवतार के नाभि लिंग के रूप में यहां पूजा जाता है। यह उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र के गौंडर गांव में स्थित है। यहीं पर भगवान शिव ने माता पार्वती के साथ मधुचंद्र रात्रि बिताई थी। मान्यता है कि यहां के पवित्र जल की कुछ बूंदे ही भक्तों के मोक्ष के लिए पर्याप्त हैं। सर्दियों के मौसम में भगवान की मूर्ति को उखीमठ में स्थानांतरित कर दिया जाता है। मंदिर अप्रैल-मई के महीनों में भक्तों के लिए खोल दिया जाता है एवं सर्दियों के शुरू में यात्रा बंद हो जाती है।
कलेश्वर महादेव मंदिर: यहां भगवान शिव के बैल रूपी अवतार की जाटोंओं की पूजा की जाती है। यह उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र के अंतर्गत उर्गम घाटी में स्थित है जिसकी ऊंचाई लगभग 7217 फीट है। यहां की मूर्ति को सर्दियों में कहीं स्थानांतरित नहीं किया जाता। यहां तक पहुंचने का रास्ता एक प्राकृतिक गुफा से होकर जाता है। पंच केदारों में केवल एक केदार कल्पेश्वर अपने भक्तों के लिए वर्ष के 12 महीने खुला रहता है।
केदार में भगवान शिव के विभिन्न रूपों के दर्शन के साथ ही हिमालय के अनुपम एवं अनूठे दृश्य का अवलोकन का अवसर मिलता है।
पंच केदार का महत्व इस स्तुति से स्पष्ट हो जाता है।
पंचरत्ने पंचतत्वं पंचफलं पंचामृते ।
रूद्र शिवधरि पंचरूपं पंच केदारे नमः ।।
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