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सरदार जोध सिंह

 # सरदार जोध सिंह  एक असाधारण व्यक्तित्व

                                    ( देवेश चतुर्वेदी )


जैसा कि हम जानते हैं हमारे देश भारत को स्वतंत्रता की एक भारी कीमत चुकानी पड़ी थी। एक विभाजन जिसमें लाखों लोग मारे गए और उससे कई गुना अधिक  लोगों को अपने घरों से विस्थापित होना पड़ा। उस ओर से कई ऐसे शरीर आये जिसमें सांसें तो चल रही थी एवं दिल भी धड़क रहे थे परन्तु जीवित होते हुए भी जिन्दगी वहीं छोड़ आये थे।

मजबूर होकर एक ऐसा ही परिवार हिन्दुस्तान में अमृतसर पहुंचा। विभाजन के इस दौर में सरदार जोध सिंह को अपने परिवार वालों के साथ पकिस्तान में अपना जमा जमाया हुआ कारोबार जमीन जायदाद सब कुछ छोड़ कर हिन्दुस्तान आना पड़ा। 
हिन्दुस्तान के अमृतसर गुरूद्वारे में शरणार्थी की तरह 10-15 दिन रहने के बाद अपने परिवार का भरण – पोषण करने की चिंता ने जोध सिंह को कमाई का जरिया ढूँढने के लिए मजबूर कर दिया और वे परिवार सहित लुधियाना चले आये थे।
हिन्दुस्तान में सरदार जोध सिंह की कारोबारी जिन्दगी की शुरुआत अपनी बहन के कान की बाली बेचकर मात्र 40 रूपये में पकिस्तान जा रहे एक बुजुर्ग मुस्लिम इंसान से एक भैंस खरीद कर हुई जिसके बाद फिर उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। धीरे-धीरे दुधारू पशुओं का व्यापार करने में लगे रहे और कामयाब होते गये। शीघ्र ही वह लुधियाना और कोलकाता के दुधारू पशु कारोबार का एक जाना माना चेहरा बन गये। 

डेयरी व्यवसाय बड़े उधोग में बदल गया 
पहली बार 1952 में कोलकाता आये और उसके पश्चात से यह उनका घर हो गया था। 
कोलकाता में उन्होंने डेयरी व्यवसाय शुरू किया और यही डेयरी व्यवसाय बढ़ते बढ़ते बड़े उद्योग में बदल गया और उन्होंने अन्य डेयरी उत्पाद विक्रेताओं को दूध की आपूर्ति शुरू कर दी।
सरदार जोध सिंह अब लोगों द्वारा प्यार और सम्मान से बाबूजी यानि पिता तुल्य कहे जाने लगे। जोध सिंह सिर्फ अपने परिवार के ही नहीं बल्कि कोलकाता के सिख समाज एवं अन्य सभी लोगों को वह पिता की तरह स्नेह एवं सम्मान भी देते थे। सलाह और आशीर्वाद के लिए लोग दूर दूर से उनके पास आते थे और कोई भी उनके पास से निराश होकर नहीं लौटता था।




आसनसोल में की इंजीनियरिंग काॅलेज की स्थापना 
सरदार जोध सिंह ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे एवं अंग्रेजी में भी कमजोर थे। जोध सिंह जब अपने बेटे का दाखिला कोलकाता के इंग्लिश मीडियम स्कूल में करवाने गए तो इन्टरव्यू में अंग्रेजी में सवाल पूछे गए जो जोध सिंह एवं उनके बेटे समझ ही नहीं पाए जिस वजह से स्कूल ने दाखिला देने से मना कर दिया। इस घटना से जोध सिंह काफी दुखी हुए और उनके मन में ख्याल आने लगे कि गरीब लोगों का या जो अंग्रेजी में बोलना नहीं जानते उनके बच्चों का क्या होगा। इन्हीं ख्यालों ने उन्हें स्कूल खोलने के लिए प्रेरित किया।
आसनसोल में 1988 में इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना के साथ शिक्षा क्षेत्र में अपना प्रथम अध्याय शुरू किया जो आगे चलकर जेआईएस कालेज आँफ इंजीनियरिंग हुआ। अब जेआईएस ग्रुप शैक्षिक संगम बन गया है एवं जोध सिंह का वही बेटा इंजीनियरिंग और मेंड़िकल कालेज जैसे बड़े बड़े शिक्षा संस्थानों को सफलता पूर्वक चला रहा है। 
शिक्षा के क्षेत्र में जेआईएस ग्रुप विभिन्न क्षेत्रों में 170 कार्यक्रमों व 37 संस्थानों के साथ विभिन्न कार्यक्रमों में नामांकित 39000 से अधिक छात्रों के साथ पूर्वी भारत का सबसे प्रमुख शैक्षिक सेवा संस्थान बन चुका है।
सरदार जोध सिंह परिवहन लोहा और इस्पात रियल एस्टेट दूरसंचार एवं शिक्षा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में सफल रहे एवं एक दूध के तबेले से शुरू हुआ कारोबार अब टेक्नोलोजीकल संस्थानों तक पहुँच गया है।
उनकी लोकप्रियता की एक बड़ी वजह उनकी समाज सेवा भी है। जोध सिंह ने हजारों लोगों को रोजगार दिये। सरदार जोध सिंह की धर्मपत्नी ने भी हमेशा उनका साथ  दिया। 
उनकी पत्नी सरदारनी सतनाम कौर भी बहुत ही दयालु थीं और उनका नाम समाज के लिए परोपकारी कार्यों से जुड़ा था। वे डनलप गुरूद्वारा कमेटी की एक सक्रिय सदस्य थीं।
सरदार जोध सिंह 98 वर्ष की आयु में एवं सरदारनी सतनाम कौर 93 वर्षीय आयु में अपना नश्वर शरीर छोड़ गये।

सरदार जोध सिंह की कहानी सबके लिए प्रेरणा दायक है 
आज उनके तीनों बेटे तरनजीत सिंह, हरनजीत सिंह और अमरीक सिंह पिताजी के निधन उपरान्त उनके द्वारा स्थापित कारोबार को और तेजी से आगे बढ़ा रहे हैं।
सरदार जोध सिंह की कहानी असाधारण है एवं हर उम्र के लोगों के लिए प्रेरणा दायक है। यह उनकी बुद्धिमत्ता दृढ़ता मेहनत और संघर्ष से हासिल की हुई कामयाबी की कहानी है।