# नशीले मादक द्रव्य

# नशीले मादक द्रव्य हमारे समाज में घुलता जहर

                        " देवेश चतुर्वेदी "



भारत दुनिया के दो प्रमुख अवैध मादक उत्पादन क्षेत्रों के मध्य में स्थित है। पश्चिम में गोल्डन क्रीसेंट एवं पूर्व में गोल्डन ट्रायंगल जो भारत को नशीली दवाओं के अवैध व्यापार का उपभोक्ता केंद्र बनाते हैं।
 गोल्डन क्रीसेंट में अफगानिस्तान ईरान और पाकिस्तान शामिल हैं। वहीं गोल्डन ट्रायंगल में म्यानमार लाओस और थाईलैंड के क्षेत्र शामिल हैं और यह दक्षिण पूर्व एशिया का मुख्य उत्पादक क्षेत्र है एवं यूरोप और उत्तरी अमेरिका के लिए नशीली पदार्थों की आपूर्ति का सबसे पुराना मार्ग है। पिछले कुछ वर्षों में कुछ अन्य मार्ग भी विकसित हुए हैं तथा तस्करी के नए तरीके भी ईजाद किए जा रहे हैं। 


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नशीले मादक द्रव्य 

 
भारत में भांग चरस गांजा आदि तो उपलब्ध थे ही पर अब दुनिया भर के बाजारों पर राज कर रहे सिंथेटिक द्रव्य भी आसानी से उपलब्ध हो रहे हैं। 
 भारत की सीमाओं पर रहने वाले गरीब अशिक्षित बेरोजगार युवाओं की मदद से तस्कर आसानी से इन अवैध मादक द्रव्यों को ले जाने में सक्षम हैं। पूरे कार्टेल को ट्रैक करना एवं किंगपिन तक पहुंचना बहुत ही मुश्किल हो जाता है क्योंकि इस प्रक्रिया में शामिल अधिकांश युवाओं के गिरफ्तार होने पर भी इन्हें पूरे संचालन की बहुत ही कम या कोई भी जानकारी नहीं होती है। सीमा की प्रकृति एवं भूगोल को ध्यान में रखने के साथ-साथ मादक द्रव्यों के उत्पादन मांग एवं आपूर्ति के आधार पर विभिन्न सीमाओं पर अलग-अलग तस्करी के तरीके अपनाए जाते हैं। 
 नशीले पदार्थों के सेवन से अनेक युवाओं का जीवन बरबाद हुआ है पर फिर भी युवा पीढ़ी इसका काफी संख्या में सेवन कर रहे हैं। 
मादक द्रव्यों के सेवन से किसी भी प्रकार से कार्य क्षमता या कुशलता में वृद्धि  नहीं हुई है।  बस कुछ ही क्षणों के लिए इसके सेवन करने पर एक विचित्र प्रकार के आनन्द की अनुभूति होती है  परन्तु यह आनन्द का नशा अल्पकालीन ही है तथा व्यक्ति को धीरे-धीरे मौत के जाल में ले जा रहा होता है। इस नशे से दिल का दौरा, स्ट्रोक, कोमा, हाइपोथर्मिया, रक्त विकार, पैनिक अटैक जैसे रोग हो रहे है। यह एक ऐसा दुष्चक्र है जो केवल एक व्यक्ति को ही नहीं बल्कि पूरे समाज को प्रभावित करता है। मादक द्रव्य का उपयोग करने वाले व्यक्ति के लिए स्पष्ट रूप से सोचना एवं सही निर्णय लेना अकसर कठिन हो जाता है। एक बार किसी को इसकी लत पड़ जाए तो उसका इस चक्र से निकलना बहुत ही कठिन होता है। 
 यह कोई छुपा तथ्य नहीं है कि नशीले द्रव्यों के उपयोग की समस्याएं दिन प्रतिदिन बढ़ रही हैं। गोवा रेव-पार्टी का सबसे बड़ा केंद्र है जहां देश के निवासियों के साथ-साथ विभिन्न देशों के विदेशी भी बड़ी मात्रा में शामिल होते हैं। देश के कई अन्य भागों में भी एसी पार्टियों में मादक द्रव्य का सेवन किया जा रहा है।
 नशीली दवाओं के व्यापार से प्राप्त धन का उपयोग आतंकवाद, मानव तस्करी आदि अवैध व्यवस्थाओं के लिए किया जाता है। आतंकवाद के लिए बहुत अधिक मात्रा में धन की आवश्यकता होती है और अधिकतर इन्हें नशीले मादक द्रव्यों की तस्करी के संचालन द्वारा वित्त पोषित किया जाता है। दुनिया के प्रमुख अफीम एवं चरस की खेती वाले क्षेत्र भी लश्कर-ए-तैयबा जैश-ए-मोहम्मद अल बद्र   और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे आतंकवादी संगठनों के क्षेत्र हैं जहाँ से इन संगठनों को संचालित करने के लिए तस्करी द्वारा धन प्राप्त किया जाता है।    
 विभिन्न अध्ययनों एवं अनेकों मीडिया रिपोर्टों से साफ संकेत मिल रहा है कि देश में नशीले द्रव्यों की खपत और उसकी तस्करी में दिन प्रतिदिन वृद्धि  दिख रही है। 
 नशीले द्रव्यों के दुरुपयोग को रोकने और सकारात्मक रूप से सहायता करने के लिए बहुत सारे कदम उठाए जा रहे हैं। केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो और नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के साथ राजस्व खुफिया निदेशालय, केंद्रीय जांच ब्यूरो, सीमा शुल्क अयोग और सीमा सुरक्षा नशीली दवाओं के संचालन की रोकथाम करने का काम कर रही है। लेकिन अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है। 
 प्रशासन को नशीले पदार्थों की तस्करी एवं उनके सेवन के प्रति जीरो टालरेन्स के साथ साथ कड़े कानून एवं सख्त सजा का प्रावधान करने की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त विज्ञापन एवं सोसिअल मीडिया के माध्यम से समाज में मादक द्रव्यों के सेवन से होने वाले दुष्परिणामों के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए।

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